सप्त पुरियों में सर्वप्रथम अयोध्या नगरी/ayodhya ka vritant pauranik varnan

☀ राम जी की अयोध्या ☀
सप्त पुरियों में सर्वप्रथम अयोध्या नगरी/ayodhya ka vritant pauranik varnan

  •  स्थान: 

अयोध्यापुरी  पवित्र सरयू के किनारे बसी है जो कि गंगा जी की एक पोषक नदी है |

एक अद्भुत नगरी है अयोध्या - अवध, कौशल आदि अनेकों नामों से यह नगरी प्रसिद्ध है |

सप्त पुरियों में इसका प्रथम स्थान आता है ! अयोध्या नगरी में भगवान राम के पिता दशरथ जी उनके पिता अज आदि अनेकों सूर्यवंशी राजाओं के द्वारा शासन हुआ है |

यूं तो अयोध्या शब्द का अर्थ है जहां कोई योद्धा ना हों अयोध्या |
दूसरा अवध है जहां कभी किसी का वध ना हुआ हो उसे अवध कहते हैं |
ये कौशल नगरी है इसीलिए भगवान श्रीराम को कौशलेंद्र भी कहते हैं, अथवा वहां के जितने भी राजा हुए सभी परम कौशल थे इसलिए उसका नाम कौशल रखा गया |

अयोध्या नाम के पीछे एक कथा आती है जो हमने सुना है, जब भगवान के 24 अवतारों में आने वाले परशुराम जी अपने पिता के वध का प्रतिशोध लेने के लिए इक्कीस बार क्षत्रियों का वध किया इस धरा को क्षत्रिय विहीन किया |

तो प्रत्येक बार वह आयोध्या के राजमहल के द्वार पर खड़े होकर वहां के शासक को ललकारा करते थे -पुकारा करते थे | अपने फरसे को हाथ में लेकर शिवभक्त परशुराम जी जो कि भगवान शंकर के द्वारा प्रदत्त था उनको उस परशु को लेकर अयोध्या के द्वार पर आकर पुकारा करते थे |

देखिए भगवान परशुराम ने उस समय हर एक क्षत्रिय को नहीं मारा था !

जो उस समय दुष्ट स्वभाव वाले थे- सहस्त्रार्जुन आदि दुष्ट क्षत्रियों का हि उन्होंने अंत किया था | वह प्रत्येक नगरी के सामने जाकर ललकारा करते थे, जो जो उद्दंड क्षत्रिय होते थे तो वह उनसे युद्ध करने आते थे |

तो वह अपने परशु से उन्हें परलोक पहुंचा दिया करते थे |

राजा रघु के समय परशुराम जी अयोध्या नगरी के द्वार पर खड़े होकर आवाज दिया करते थे तो राजा रघु ने सोचा कि- यह ब्राह्मण देवता हैं इनका अपमान करना या वध करना हमारे  रघुवंशियों के धर्म के खिलाफ है | और यह आयोध्या बड़ी शांत नगरी थी, इसलिए ब्राम्हण का अपमान ना हो ब्राह्मण का सम्मान रखने के लिए ही परम तपस्वी राजा रघु ने युद्ध ना करने की ठान ली थी |

जितने भी रघुवंशी थे वह भगवान परशुराम के  ऐश्वर्य को, पराक्रम को पहचानते थे कि यह और कोई नहीं भगवान के ही अवतार हैं, जो कि एक ब्राह्मण का रूप धर के आए हैं इसलिए सब उनके चरणों में नतमस्तक हुआ करते थे |

 परशुराम आते थे और आयोध्या के महल के द्वार से ललकारा करते थे और जब कोई नहीं आता था, तो कहा करते थे कि इस राज में कोई योद्धा नहीं है- यह राज आ योद्धा है |

इसीलिए इसका नाम अयोध्या हुआ |

अयोध्या नगरी जहां कभी कोई युद्ध नहीं हुआ और इसलिए युद्ध न होने की वजह से वहां किसी का वध भी नहीं हुआ |

इसलिए इसका एक नाम अवध भी है |
  •  विशेष: 
अयोध्या मथुरा माया•
 यह सात पुरिया हैं जिनमें से सर्वप्रथम नाम अयोध्या का आता है |
यह सात पूरी जो हैं- मोक्ष को प्रदान करने वाली हैं और मोक्ष पुरियों में सर्वप्रथम जिसका नाम आता है वह आयोध्या है |


  •  पौराणिक महत्त्व: 

अयोध्या नगरी के अनेकों महान शासक हुए हैं-  दिलीप, भगीरथ, शिवि, खटवांग आदि इसीलिए भगवान विष्णु ने अवतार ग्रहण करने के लिए इसी नगरी को चुना |

  •  आध्यात्मिक महत्व: 

दशरथ और कौशल्या के पुत्र के रूप में भगवान ने सगुण साकार रूप धारण करके मनुज अवतार धारण किया- इसलिए इस अयोध्यापुरी का महत्व और भी बढ़ गया |
जब जब होई धरम की हानि
बाड़इ असुर अधम अभिमानी |
जब-जब धर्म की हानि होती है-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | 
तब तब भगवान अपना स्वरूप धारण करते हैं मनुज अवतार धारण करके और दुष्टों का संहार करते हैं |

विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार |

अपनी इच्छा से भगवान श्री राम अयोध्या में मानव शरीर धारण करते हैं |


  •  महत्त्व: 

• इस राम जन्म भूमि के वजह से इस अयोध्या का महत्व और भी देश विदेशों में पूरे विश्व में बढ़ गया | आप सभी जानते हैं कि करीब पिछले पांच सौ (500) वर्षों से राम जन्म भूमि के ऊपर बड़ा विवाद रहा वह अब जाकर उस विवाद के ऊपर हमने विजय प्राप्त की और वह विवाद हटा | भगवान राम का वहां पर भव्य मंदिर निर्माण होने का फैसला हुआ |

  •  मुख्य पर्व: 

मुख्य पर्व: राम नवमी, दीपावली, हनुमान जयंती


  •  भौगोलिक स्थिति: 

उत्तर प्रदेश, भारत
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